पृष्ठ:मनुस्मृति.pdf/६५०

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पाशाऽध्याय प्रतिगृह्यापतिप्राय भुक्त्वाचान्न गिहितम् । जपस्तरसमन्दीय पूर्यते मानाव्यहार (२५३। सामारौद्रंतु बहना मासमन्थस्य शुध्यति । “मवन्त्यामाच स्नानमर्षम्णामिति च त्वम् ।।२५४ । प्रतिग्रह के अयोग्य का प्रतिग्रह लेकर और निन्दित अन्न भोजन करके तरस मन्दी धावति यह जिनमे प्राताहै उन पवमान देवताको ऋ०९।५८॥१-४ ऋचाओ को तीन दिन पढ़ने से मनुष्य पवित्र होता है ।२५शा "सोमाला धारये था. ऋ०६। ७४।१-४ सूक्त और "अर्यम्णामिति-" ["अर्यमणं वरुणं मित्र ऋ० ४] (ठीक'अर्यमणाम्' प्रतीक वाला ३ ऋचाका | काई सूक्त नहीं मिलता) इन ३ ऋचाओं का एक एक मास अभ्यास करने से नदी में स्नान करता हुवा बहुत पापों वाला शुद्ध हो जाता है | अब्दामिन्द्रमित्येतदेनस्वी सप्तकं जपेत् । अप्रशस्तं तु कृत्वाप्सु मासमासीत मैक्षभुक् ।।२५५॥ मन्त्रीशाकनहामीयरब्द हुत्वा धृतं द्विजः । सुगुर्वष्यपहन्त्येनो जप्त्वा वा नम इत्यचम् ॥२५६।। पापी पुरुष छ. मास तक "इन्द्र मित्रं वरुणमग्नि भूतये' ऋ० १११०६ ॥ १-७ इत्यादि ७ ऋचा का जप करे और जिसने जल में कोई न करने का काम किया हो वह एक मास तक मिक्षा भोजन से निर्वाह करे ।।२५५।। (३ पुस्तको से अप्रशन्तम्-अप- काराम् पाठ है) देवकृतम्यैनमोऽवयजनमसि यजु.८११३ इत्यादि ८ मन्त्र कात्यायन श्रौत सूत्र १०८16 के अनुसार शाकल होमीय