पृष्ठ:मनुस्मृति.pdf/६५१

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६४८ मनुस्मृति मापानुवाद कहाते हैं। इनका पाठ करके हवन करने वाला वा "नमकपर्दिने इत्यादि यजु. १६ । २९ (वा "नम. शिवे०" यजुः १६॥३१ इत्यादि वा 'नमो मित्रस्य वरुणम्य०' इत्यादि ऋ० १०१ ३७११) ऋचाको जपकर एक वर्षमे बड़े पापको भी नष्टकर देता है ।२५६ महापातकसंयुक्तोऽनुगच्छेद्गाः समाहितः । अभ्यस्यान्द पात्रमानी शाहारो विशुष्यति ॥२५७।। अरण्ये या निरभ्यस्य प्रयतो वेढमहिनाम् । मुच्यते पातकः सर्वैः पराकै शोषितस्त्रिमिः ॥२५॥ घड़े र पातकों से युक्त हुआ जितेन्द्रिय होकर गायों को परावे और पावमानी पवमान देवता की (ऋ०९।१११से ९॥ ११४ ४ तक अर्थात् ९३ मण्डल की समस्त) ऋचाओं को एक वर्ष पर्यन्त पढ़कर मिक्षाभोजन करे तव शुद्ध होता है (दा पुस्तकों में महापातक के स्थान मे उपपातक पाठ है वही ठीक भी जान पड़ता है) ॥२५७ पूर्वोक्त तीन पराकोंसे पवित्र हुवा और वाह्य आभ्य- न्तर शौचयुक्त होकर बन में वेदसंहितामात्र को पढ़कर सम्पूर्ण पातकों से छट जाता है।२५८ श्यहं तूपयसेयुक्तस्त्रि रहोऽम्युपयन्नपः । मुच्यते पातकैः सबैस्त्रिजपित्वा घमर्षणम् ॥२५६|| यथाश्वमेधः ऋतुराट् सर्वपापाऽपनोदनः । तथा धमर्पणं सूक्तं सर्वपापापनोदनम् ॥२६॥ संयत्त होकर चिरात्र उपवास करें और प्रतिदिन त्रिकाल लान करता रहे। जल में खड़ा हुआ-'ऋतं च सत्यं ऋ० १०॥ १९०११-३ इस अघमर्पण सूक का निराकृत्ति पढ़कर सब पापों .