पृष्ठ:मनुस्मृति.pdf/६६४

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द्वादशाऽध्याय पशवश्च मगाश्चे व जपन्या तामसी गतिः । ४२|| जा मत्यादि गुणत्रय निमित्त तीन प्रकार की गति कही, वह देश कालाहि भद से फिर भी उत्तम. मध्यम, अथम वीन प्रकार की है और फिर कर्म का विशेष (अनन्त ) जानना चाहिये ।४१॥ वृक्षादि, कृमि, कोट, मल्य, सर्प, कछुवं, पशु और मृग, यह तमानिमित्त निकृष्ट गति है ॥४२ हस्तिनश्चतुरङ्गाश्च भूमाम्नेच्छाच गर्हितः। सिंहाव्याघ्रावराहाच मध्यमा वामसी गतिः ॥४॥ चारणाच सुपर्णाश्च पुरुषारची दाम्मिक': । रक्षांसि च पिशाचाच तामसीपत्तमा गतिः ॥४४॥ हाथी, घोडे, शूह, निन्दित म्लेच्छ, सिंह ध्यान और सूकर यह तमानिमित्त मध्यम गति है ॥४३॥ और चारण (खुशामदी) तथा पनी और दम्म करने वाले पुरुष और राक्षम (हिसक) तथा पिशाच (अनाचारी) यह तमोगतियों में उत्तम गति है ।।४४|| झाला मला नटाश्चैव पुरुषःः शस्त्रवृत्तय । घृतपानप्रसक्ताश्च जपन्या राजसी गतिः ॥४५॥ राजानः क्षत्रियाश्चैत्र राजां चैव पुरोहिताः । बाहयुद्धप्रधानाच मध्यमा राजमी गतिः ॥४६॥ (दशम अध्याय में कहे हवे) मा मल और नद तथा शर से आजीविका वाले मनुष्य और जुवा तथा मद्यपान मे आमक्त पुरुष, यह रजो गुण की निकृष्ट गति है ॥४५॥ राजा लोग तथा क्षत्रिय और राजों के पुरोहित और वाद वा झगडा करने वाले यह मध्यम राजम गति है (रायवानन्द ने प्रधाना. प्रसता. की