पृष्ठ:मनुस्मृति.pdf/६६५

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. मनुस्मृति भाषानुवाद और रामचन्द्र ने 'वाद -दान" की व्याख्या की है ) ॥४६॥ गन्धर्वा गुह्यका यक्षा विबुधानुचराश्च थे। तथैवाप्सरसः सर्वा राजसीपूत्तमा गतिः ॥४७॥ तापसायतयाविना ये च वैमानिका गया। नक्षत्राणि च दैत्याच प्रथमा साविकी गतिः।४। गन्धर्व, गुह्यक, यक्ष और देवतोके अनुचर तथा सव अप्सरा, यह ग्जोगुण की गतियो मे उत्तम गति है ||४७|| तप करने बने, यति, विप्र और विमानो पर घूमने वाले तथा (चमकते) नक्षत्र और दैत्य, सत्वगुण की अधम गति है ।।४८॥ यज्जानभूपयोदवा वेदा ज्योतींषि वत्सराः। पितर पर साध्या द्वितीयासाचिक्कीगतिः ॥४६॥ ब्रह्मा विश्वसृजो धर्मा महानऽव्यक्तमेव च। उत्तमा साविकीमतां गतिमाहुर्मनीषिणः ।५० यज्ञ करने वाले, ऋषि लेाग, देव और वेद, तारे और काल न पितर और साध्य यह मध्यमा साविक गति है ॥४९॥ ब्राहण और विश्व को उत्पन्न करने वाले (सृष्टि के प्रारम्भ के 'ब्रह्मारवादि ) और धर्म तथा महत्तत्व और अव्यक्त (मूलप्रकृति) का विद्वान लोग उत्तम सात्विक गति कहते हैं ॥१०] एप सर्वः समुद्दिष्टस्त्रिप्रकारस्य कर्मणः। त्रिविधस्त्रिविधः कुत्स्न संसारः सार्वभौतिक ॥५१॥ इंद्रियाणां प्रसङ्ग न धर्मस्या सेवनेन च । पापान संयान्ति संसारानविद्वांसानराधमाः ॥५२॥