पृष्ठ:मनुस्मृति.pdf/६६६

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द्वादशाऽध्यायः ६६३ यह सम्पूर्ण तीन २ प्रकार के कर्म की सार्वभौतिक ३ प्रकार की सब सृष्टि कही ।।१।। इन्द्रियों के प्रसङ्ग से और धर्म के आचरण न करने से मूड अम्म मनुष्य कुरिसत गतियों को प्राप्त होते हैं ।।१२॥ यां यां यानि तु जीवोऽयं येन येनेह कर्मणा । क्रमशोयाति लोकेस्मिंस्तचत्सर्व निबोधन ॥५३॥ "वहन्वर्षगणान्धोरानरकान्प्राप्य तत्वयात् । संसारान्प्रतिपयन्ते महापासकिनस्त्विमान् ॥५४॥" यह जीव जो जो कर्म करके जिस जिस योनि में इस सृष्टि में जन्म लेता है, वह बह सब मुनो ॥५३॥ "(ब्रह्महत्यादि) महा पातक करने वाले जीव बहुत वर्ष पर्यन्त घोर नरकों में पड़ कर उस के क्षय से संमार मे य जन्म धारण करते है कि:-11 (५३ वें में योनि प्रामि की प्रतिज्ञा करके २५ वें. मे योनियो का वर्णन है इस लिये धीच के ५४ वे की कुछ भी आवश्यकता नहीं है) ॥१४॥ यवसकरखरोष्ट्राणां गाजाविमृगपक्षिणाम् । चण्डालपुकसानां च प्रमहा योनिमच्छति ॥५५॥ कृमिकीटपतङ्गानां विड्मुजां चैव पक्षिणाम् । हिंसानां चच सच्चानां सुरापाब्राह्मणोबजेन् ।१६। कुत्ता, सूकर, गर्दभ, अंद, बैल, बकरा. भेड़, मृग, पक्षी, चण्डाल और पुक्कस योनि को ब्रह्माहत्यारा प्राप्त होता है ।।५५ मध पीने वाला ब्राह्मण कीडे, पतन, मैला खाने वाले पक्षियों और हिंसा करने वाले प्राणियों की (योनि को ) प्राप्त होता है ।।१६।। 1