पृष्ठ:मनुस्मृति.pdf/६६८

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द्वादशाऽध्याय -धान्यं हत्या भवत्या तुः कास्यं हंसी जलं प्लवः । मसु दशः पयः काको रस श्वानकुलोघृतम् ॥६२|| मरिण मोती, मूंगा और नाना प्रकार के रत्नों को चुरा कर हेमकार पक्षियों में जन्म होता है ।।६॥ धान्य को धुराने से चूहा, कांसे के चुराने से ईस, जल के चुराने से मेंढक, मधु को चुराने से मक्खी चा डांस, सुधके चुरानेसे कौवा, रसको चुराने से कुत्ता और घृत को चुराने से नेवला होता है ॥६२|| मांसं गृधोषां मद्गुस्सैल तैलरका खगः । चीरीवाकस्तु लवणं बलाका शकुनिधि ॥६॥ कौशेयं तिचिरिह का होम हवातु ददुः । कार्पासतान्तन क्रौन्धा गाघा गां वाग्गुदागुडमा६४] मांस को चुराने से गिद्ध, वपा (चरबी) के चुराने से जल- कौवा नाम पदी, तेल को चुराने से तेल पीने वाला पक्षी, लवण को चुराने से झींगरी और दधि के चुराने से यलाका नाम पक्षो होता है ।।६।। रेशमी कपड़े चुराने से तीतर, अलसी का वस्त्र चुराने से मेढक, कपास के कपड़े चुराने से सारस, गाय के चुराने से गोधा और गुरु के पुराने से वाग्गुद नाम पक्षी होता है ।।६४॥ छुच्छन्दरिः शुभानगन्धापनशाकंतुहिणः । खावित्कृतान विविधमकृताच तु शन्यकः ॥६५॥ घको भवति हुत्वाग्नि गृहकारीक्ष पस्करम् । रक्तानि हत्ता वासांसि जायते जीवजीवक ॥६६॥ अच्छे सुगन्धित पदार्थों के चुराने से छलन्धर, सागपात के