पृष्ठ:मनुस्मृति.pdf/६६९

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६६६ मनुस्मृति भाषानुवाद चुराने से मोर, विविध सिद्ध अन्न चुगने मे गीदड़ और कच्च अन्न चुगने मे शसक होना है || आग को चुगने में धक शमुसलादि के चुरान से गृहकारी पक्षी (मकड़ी) और रंग वस्त्रों के चुरान से जीव जीवक (वकार) होता है ॥६६॥ कोमगेमं व्याघ्रोश्न फलमूलं तु मर्कटः । स्त्रीवास्तोकको पारि यानान्युष्टः पशूनजः ॥६७|| ॥ यवा तद्वा परद्रव्यमपटुत्व बलान्नरः । अवश्यं याति तिर्यकत्वं जग्ध्वाचवा हुतं हविः ।।६८|| सृग, हाथी को चुराने से भेड़िया घोडे के चुगने मे व्याय, फल मूल के चुराने मे बन्दर और स्त्री के चुरानेसे गड, पीने के पानी चुराने से चातक पत्नी, मारियों के चुराने मे इंद तथा पशुओ के चुराने में बकरा होता है (एक पुस्तक में स्तोकक- चातक है) १६जा मनुष्य को दूमरे का कुछ अमार पदार्थ भी चुराने और पिना होम किये हवि के भोजन करने से अवश्य तिर्यग्यानि प्राप्त होती है ॥८ स्त्रियोप्येतेन कन्पेन हत्ता दोपमवाप्नुयुः । एनेपामेव जन्तूनां भार्यात्वमुपयान्ति ता. ॥६६॥ स्वैभ्यः स्वेभ्यस्तु कर्मभ्यश्च्युतावर्णा धनापदि । पायान्यसत्य संसारान् प्रष्यतां यान्ति शत्रुषु १७०। स्त्री भी इसी प्रकार चुराने के दोषों का प्राप्त होती हैं और । उसी पाप से उन्ही जन्नुवों की सी बनती हैं ॥६९|| चारों वर्ण विना आरति अपने नित्य कर्म न करने से कुत्सिन योनि को प्राप्त देकर पिर शत्रुवों के दासत्व का प्राप्त होने हैं 15०11