पृष्ठ:मनुस्मृति.pdf/६७

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मनुस्मृति भाषानुवाद करते है ) आंख पलक गिरने के समय का नाम निमेप है। १८ निमेप की १,काष्टा होती है तीन काष्ठा की १ कला, वीस कला का १ मुहूर्त, मीस मुहूर्त का १ दिन रात होता है ।।६४|| अहाराने विभजते सो मानुपदैविके । रात्रिः स्वप्नाय भूतानां चेष्टाय कर्मणामहः ॥६॥ पिच्छे राज्यइनी मासः प्रविभागस्तु पक्षयोः । कर्मवेष्टास्वहः कृष्णः शुक्ला स्वप्नाय शरी॥६६॥ सूर्य, मनुष्य, देव सम्बन्धी रात दिन का विभाग करता है। उसमे मनुष्यादिके शयनको रात्रि और कम करने का दिन है ॥६५।। मनुष्य के एक मास का १ रात दिन पितरो का होता है, उस में कृष्णपक्ष दिन कर्म करने के लिये और शुक्लपक्ष रात्रि शयन करने के लिये है।।६६|| दे राज्यहनी वर्ष प्रविभागस्तयोः पुनः । अस्तित्रोदगयनं रात्रिः स्यादक्षिणायनम् ॥६७॥ ब्रामस्य तु चपाइस्य यत्प्रमाणं समासतः । एकशो युगानां तु क्रम रास्तनिवाधन ॥६८|| मनुष्यों के एक वर्ष मे देवतों का रात्रि दिवस होता है। फिर उनका विभाग यह है कि उस में उत्तरायण दिन है और दक्षि- रामन रात्रि है। (पितरों की दिन रात्रि का तात्पर्य चन्द्रलोक वालों की दिनरात्रि है। उपनिपदों में पितृगति को चटलोक की गति और देवगति को सूर्यलाक की गति करके कहा है । सूर्य की परिक्रमा पृथ्वी एक वर्ष मे करती है। इस विचारसे सूर्यापेक्षा उत्तरायण प्रकार की वृद्धि से दैव दिन और दक्षिणायन प्रकाश 1