पृष्ठ:मनुस्मृति.pdf/६८

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प्रथमाऽध्याय ६५ की घटती से देवी रात्रि माना गया है। चन्द्रलोक पृथ्वी की परिक्रमा एक मास में करता है इस से चन्द्र = पितृलोक की १५ निकी १ रात्रि और १५ दिन का एक दिन कहा है )|| अव नामरात्रि दिवस और (कृत त्रेता, द्वापर, कलि) प्रत्येक युगों का भी परिमाण कम से सुनो ।।६८॥ चत्वार्याहुः सहस्राणि बर्षाणां तु कृत युगम् । तस्य तावच्छती सन्ध्या संध्यांशश्च तथाविधः ॥६॥ इतरेषु ससंध्येषु ससंध्यांशेषु च त्रिषु । एकापायेन वन्ते सहस्राणि शतानि च ॥७०|| (मनुष्यों के ३६० वर्ष का १ देव वर्ष, ऐसे) चार हजार वर्ष की कृत युग कहते हैं और उस की सन्ध्या (युग का पूर्वकाल) चार सौ वर्ष का होता है और सन्ध्यांश (युग का परकाल भी चार सौ वर्ष का होता है। (सन्ध्या और सन्न्यांश मिल कर कृतयुग ४००० देव वर्ष का होता है ।।६९॥ अन्य तीन (त्रेता, द्वार, कलि) की सन्ध्या और सन्ध्याश के माय जो संख्या होती है, वह क्रम से सहस में की और शत मे की एक २ मख्या घटाने से तीनों संख्या पूरी होती हैं (जैसे, फनयुग ४८०० = १७२८०००, त्रेता ३६०० - १२९६०००, द्वारर २४००-९६४०००, कालि १२०० = ४३२०००, चारों १२००० = ४२४२०००० वर्ष १ चतुयु गी) 1100 संदतत्परिसंख्यातमादावत्र चतुर्युगम् । एतद् द्वादशसाहस' देवानां युगमुच्यते ॥७१॥ देविकानां युगानां तु सहस परिसंख्यया । वाझमेकमहजेयं तावतीं रात्रिरेव च ॥७२॥ ९