पृष्ठ:मनुस्मृति.pdf/६७१

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मनुस्मृति भाषानुवाद तामिटि उग्र नरकों में तुष का अनुभव करते हैं तथा अभिपत्रवनादि बन्धन छेदन वाले घोर नरकों को प्राप्त होते हैं All और नाना प्रकार की पीड़ा तथा कारु उलूक आदि में भक्षण और तप्त बालकादि मे तपाये जाते और दारुण कुम्भीपाको को प्राप्त होते हैं संभवांश्च वियोनीपु दुःखपायामु नित्यशः । शीतातपाभिघातांश्च विविधानि भयानि च ७७॥ असकृद्गर्भवासेषु वाम जन्म च दारुणम् । वन्दनानि च कटानि परमप्यत्वमेव च ७८ अधिक दुःख बाली तिर्यक गोनियों में नित्य २ उम्पन्न होते और नाना प्रकार की शीत आतप की पीड़ा तथा अनेक प्रकार के भयो को प्राप्त होते हैं ।।७७॥ बारम्बार गर्भस्थान में वास, अति कठिन उत्पत्ति तथा उत्पन्न होने पर श्रृंखलादि के बन्धनो और दूसरे के हलकारसन के दुखों को प्राप्त होते हैं ।।। गन्धुप्रियवियोगांश्च संवासं चैव दुर्जनः । न्यार्जन च नाशं च मित्रामित्रस्य चार्जनम् ७६ जरी चैवाप्रतीकारी व्याधिभित्रोषपीडनम् । क्लेशांश्च विविधांस्तांस्तान्मृत्युमेव च दुर्जपम् १८० बन्धु और प्यारो की जुदाई तथा दुर्जनो के साथ रहना और धन कमाने का परिश्रम और धन का नाश और क्लेश से मित्र का मिलना तथा बिना कारण शो का उत्पन्न होना (ये सब प्राप्त होते हैं) ३७९|| अनिवारणीय वृद्धावस्था और व्याधियों से इलेरित होना तथा नाना प्रकार के (कृत्पिपासादि) क्लेशों और दुर्जय मृत्यु को प्राप्त होते हैं ॥८॥ ।