पृष्ठ:मनुस्मृति.pdf/६७४

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द्वादशाऽभ्यास ६७१ प्रवृत्त कर्म करने से देवताओं के साम्य को प्राप्त होता है तथा निहत कर क कास मे पञ्चभूतो को लांघकर मोक्ष को प्रात होता है । ९०॥ सर्वभूतेषु चात्मानं सर्वभूतानि चात्मनि । समं पश्यन्नात्मयोजी स्वाराज्यमधिगच्छति ॥१॥ यथोक्तान्यपि कमाथि परिहाच द्विजोत्तमः । आत्मज्ञाने शमे च स्यादवाभ्यासे च यत्नवान्। ६२|| सब भूतों में श्रात्मा को और आत्मा में सब भूतो को बरावर देखने वाला प्रात्मयाजी (श्रात्मयत्र करने वाला) स्वराज्य (माक्ष) को प्राप्त होता है ।।११|| ब्रामण यथोक्त कमों का बोहार भी आत्मज्ञान और इन्द्रियनिग्रा तथा वे के प्रयास में यत्न करें। एतद्धि जन्मसाफल्यं ब्रामणस्य विशेषतः। प्राप्यतकृतकात्यो हि द्विजोभवति नान्यथा ॥१३॥ पितृदेवमनुष्याणां वेदश्चक्षुः सनातनम् । अशक्यंचाऽप्रमेयंच वेदशास्त्रमिति स्थितिः ॥६४ ब्राह्मण का विशेष करके जन्मासाफल्य यही है। क्योंकि इसका पाकर द्विज कृतकृत्य होता है दूसरे प्रकार नहीं ॥५३पितर देव और मनुष्यों को वेद आंख है और वह सनातन है तथा (अत्य प्रन्थ पढने मात्र से जानने को) अशक्य और अप्रमेय है। इस प्रकार विदशास्त्र की) स्थिति है ।।५४|| या वेदनाशा: स्मतयो याश्चकारच कुटष्टयः । सातानिष्फला प्रत्य तमोनिष्ठाहिताः स्मृताः ।।