पृष्ठ:मनुस्मृति.pdf/६९

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मनुस्मृति भाषानुवाद - यह जो प्रथम गिनाये इन्ही चार युगोंको घारह हजार १२००० गुण करके १ देव युग कहाता है ||७|| देव सहन्न युगो का ब्रह्मा का एक दिन और सहम युगो की रात्रि (अर्थात् देव दो सहन होने से ) ब्रह्मा का रात्रि दिन होता है। दैव १००० वर्ष का एक युग इसे १००० गुणा करने से १२०००००० दैव वर्ष का १ ग्राम दिन हुवा । इसे ३६० गुणा करने से ४३२००००००० चार अर्व वत्तीस करोड़ मानुप वर्षों का ब्राह्म दिन और इतनी ही रात्रि हुई 11७२|| तडै युगमुह गन्तं ब्राह्म' पुण्यमहर्विदुः ।) रात्रि च नाचनीमेव तेऽहोगविदेाजनाः ॥७॥ तस्यसोभर्निशस्यान्ते प्रसुप्तप्रतियुध्यते । प्रतिबुद्धश्च मृजति मनः सदसदात्मकम् ॥७४॥ सहन्न चुग से अन्त अर्थात् समाप्ति है जिसकी उसे ब्रह्मा का पुण्य दिवस और उतनी ही रात्रिका वे अहोरात्र जानते हैं ।।७शा पूर्वोक्त अहोरात्र के अन्त मे वह (ब्रह्मा) सोतसे जाग्रत होता है और जागकर सङ्कल्प विकल्पात्मक मन को उत्पन्नकरता है ।।७४|| मनः सृष्टिं विचरुले चोयमानं सिसूचया । आकाशें जायते तस्माचस्य शब्दं गुणंविदुः ॥७॥ प्रामाशाच विकुर्वाणात्सर्वगन्धवहः शुचिः । बलवान् जायते आयुः स ने स्पर्शगुणोमतः ॥७६|| (परमात्मा की ) रचने की इच्छा से प्रेरित किया हुवा मन सृष्टि को विकृत करता है। मनस्तत्वसे आकाश उत्पन्न होता है उस गुण को शब्द कहते है ।।७५॥ आकाश के विकार से सब गन्ध