पृष्ठ:मनुस्मृति.pdf/७१

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मनुस्मृति भापानुवाद "सत्ययुग मे धर्म पूर्ण चतुष्पाद और सत्य रहता है क्योंकि तब अधर्म से मनुष्यों को धन प्राप्त नहीं होता |शा इतर (तीन- त्रेता द्वापर कलि) में वेद में प्रतिपादित धर्म क्रमश चोरी, झूठ, माया, इन से धर्म चौथाई २ क्षीण होता है ॥२॥" "अरोगाः सर्वसिद्धार्थाश्चतुर्वर्षेशतायुषः । कृतत्रेतादिषु ह्यपामायुह सति पादशः ॥३॥ वेदोक्तमायुर्मानामाशिपञ्चैव कर्मणाम् । फलन्त्यनुयुगलोके प्रभावश्च शरीरिणाम् ।।४।" "सत्ययुग में सब रोग रहित होते है और सम्पूर्ण मनोरथ पूरे होते हैं। आयु ४०० वर्ष की होती है। आगे ताहि मे इनकी चौथाईर आयु घटती है ।।८। मनुष्योकी वेगानुकूल आयु कमौके फल और शरीरधारियोंके प्रगाव सब युगानुकूल फलते हैं ।।४।। "अन्ये सतयुगे धर्मास्त्रेतायां द्वापरे परे। अन्ये कलियुगे नणां युगहासानुरूपतः ||८|| तपः परं कृतयुगे प्रेतायां शानमुच्यते । द्वापरे यजमेवाहुर्दानमेकं कलौ युगे ||८६॥" युगो की हीनता के अनुसार मनुष्यों के धर्म सत्ययुग के और हैं त्रेता के दमरे हैं द्वापर के अन्य और कलियुग के और ही हैं ||८५| कृतयुग मे तप मुख्य धर्म है त्रेता में ज्ञान प्रधान है, द्वापर. मे यन्त्र कहते है और फलि मे एक दान ही प्रधान है |८|| (८१ से ८६ तक छ श्लोक भी प्रक्षिप्त जान पड़ते हैं। क्योकि मनु सा धर्मात्मा सत्यवादी पुरुप ऐसा असत्य लिखे सो सम्भव नही प्रतीत होता जैसा कि ८१ श्लोक में कहा है कि सत्ययुग में