पृष्ठ:मनुस्मृति.pdf/७५

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मनुस्मृति भाषानुवाद भूतानां प्राणिनः श्रेष्ठा प्राणिनां बुद्धिजीविनः ।। बुद्धिमत्सु नरा. श्रेष्ठाः नग्पु ब्राह्मणाः स्मृताः ॥६६॥ हवन मे जिस के मुख से (मुखाच्चारित मन्त्र के साथ) त्रिदिमौकस (पृथ्वी अन्तरिक्ष दिव के रहने वाले निरुत्तोक वायु आदि) देवता हज्यों और पितर कव्या को पाते हैं, उस से अधिक कौन प्राणी हो १९५|| भूनों (स्थावरजङ्गमा)प्राणी (कीटाडि) अंठ हैं। इन में भी बुद्धिजीवी (पश्गदि )। इन सत्र में मनुष्य श्रेष्ठ है और मनुष्यों में ब्राह्मण ॥२६॥ ब्राह्मणेषु च विद्वांसो विद्वत्तु कृतबुद्धयः । कृतद्धिषु कर्तारः कषु ब्रह्मवेदिनः ॥६॥ उत्पत्तिरेव विग्रस्य मूर्तिधर्मस्य शाश्वती । स हि धर्मार्थमुत्रानो ब्रह्मभूयाय कल्पते ||९८}} बामणों मे अधिक विद्यायुक्त श्रेष्ठ हैं, विद्वानों में जिन की मौतोक कर्मों के विषय कवं व्यबुद्धि हो, और उन से करने वाले और करने वाली से अमनानी अंट है ॥wi ब्रह्मयज्ञ की यति ही घन की शाश्वत मूर्ति है क्या कि वह ब्राह्मण धर्मार्थ उत्पन्न हुवा है। मोक्ष का अधिकारी है। (ब्रामण, क्षत्रिय वैश्य द्विज कहाते हैं अर्थात् इन का जन्म क बार मार के गर्भ में दूसरा गायत्री माता और गुरु पिता से ज्ञाता है। यह द्विज महाने का अधिकारी यथार्थ मे दूसरे जन्म से होता है । इम लिये यहां ब्राह्मण की उत्पत्ति का तात्पर्य दूसरे विधासम्बन्धी जन्म से है)॥९॥ ग्रामणा जायमानो हि पृथिव्यामधिजायते ।