पृष्ठ:मनुस्मृति.pdf/७७

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मनुस्मृति भापानुवाद धर्मानुसार सब जगत् को चला कर जगत् का उपकार करता है। और इस से अर्थ (धनादि ) प्राप्त होते हैं तो एक प्रकार से धर्मोपदेष्टा हानेस सब जगन् की कमाई का ब्राह्मण प्रधान सहायक होने से किसी को यह न समझना चाहिये कि ब्राह्मण न्यर्थभानी (मुफ्तखोर) है। किन्तु सब को ब्राह्मण के मुख्यकर्म धर्मोपदेश से जीविका है यही उस की कृपा जानो । परन्तु यह प्रशंसा जन्म- मात्र के ब्राह्मण हुवो की नहीं। ऐसा यथार्थ ब्राह्मण घड़े तप से कमी कठिनता से कोई हो पाता है ) ॥१०१।। 'उस ब्राह्मण के, और शेप क्षत्रियादि के भी कम क्रमश जानने के लिये बुद्धिमान स्वायम्भुव मनु ने यह धर्म शास्त्र बनाया ॥१०२।। "विदुपा ब्राह्मणेनेटमध्येतव्यं प्रयत्नतः । शिष्येम्पश्च प्रवक्तव्यं मम्यछ्नान्येन केनचित् ॥१०३|| इदं शास्त्रमधीयाने ब्रामणः शंसितव्रतः । मनोवाग्देहजैनित्यं कर्मदेोपेन लिप्यते ॥१०४॥" विद्वान् ब्राह्मण का यह धर्म शास्त्र पढ़ना और शिष्यों को पढाना योग्य है । परन्तु अन्य किसी को नहीं ॥१०॥ इस शास्त्र को पढा इस शास्त्र की आज्ञानुसार कर्म करने वाला ब्राह्मण मन वाणी और देह से उत्पन्न होने वाले पापोंसे लिप्त नहीं होता ।१०४॥ "पुनाति पंक्ति वन्ण्यांश्च सप्त सप्त परावरान् । पृथिवीमपि चैबेमां कृत्स्नामेकापि साहति ।।१०५॥ इदं स्वस्त्ययनं श्रेष्ठमिदं धुद्धिविवर्धनम् । इदं यशस्यमायुष्यमिदं निःश्रेयसं परम् ॥१०६॥" 'अपवित्र पाति का (इस धर्मशास्त्र का जानने वाला) पवित्र