पृष्ठ:मनुस्मृति.pdf/७८

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प्रधमाऽध्याय 'कर दूता है और अपने वंश के सात पिता प्रपिता प्राति और सात पुत्रादि प्रम में इन मब १४ का पवित्र कर देता है तथा इस सम्पूर्ण पृथ्वी का भी यह (ोने) योग्य? ॥१५॥ यह शास्त्र कल्याण देने वाला और बुद्धि मा बहाने वाला तथा यश का देने वाला और श्रायु का बढाने वाला है और मोन का भी सहायक है ।।१० "अग्मिन्धारिखलनाचा गुणदापीच फर्मणाम | चतुर्णमपि वर्णानागाचारभव शाश्वतः ॥१८॥' 'इम (स्मृति) मे मम्पूर्ण धर्म कहा है और कमों के गुण दोष तथा पारों वर्षों का शाश्वन (परम्पग से होता आगा) श्राचार भी कयन किया है ॥१०॥ आचार. परमो धर्मः श्रुत्मुक्तः स्मात एव च । तस्मादस्मिन्सनायुक्तो नित्यं स्यादात्मयान् द्विज ॥१०॥ अति (वेद) और स्मृति में कहा या श्राचार परम धर्म है। इस लिये अपना कल्याण चाहने वाला विज मन्ना आचारयुक्त रहे ॥१८॥ आचाराद्विव्युतो चियो न वेटफलमश्नुते । श्राचाग्य तु मंयुक्तः मम्पूर्ण कलभाग्भवेत् ॥१०६|| एवमाचारता दृष्ट्वा धर्मस्य मुनयो गतिम् । सर्वस्य तपसा मूलमाचारं जगृहुः परम् ॥११०॥ याचार से जुटा हुवा विप्र वेद के फल का नहीं पाता और जा आचार से युक्त है, वह सम्पूर्ण के फल का भागी होगा ।१०९। मुनियों में प्राचार से धर्म की प्राप्ति इस प्रकार से देख कर धर्म ।