पृष्ठ:मनुस्मृति.pdf/७९

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७६ मनुस्मृति भाषानुवाद के परम मूल आचार का गृहण किया था ॥११॥ "जगतञ्च समुपति मत्कारविधिमेव च। व्रतचोपचारं च स्नानन्या च परं विधिम् ॥१११|| बाराधिगमन चैव विवाहाना च लक्षणम् । महायज्ञविधान च भाकल्पच शाश्वतः ॥११॥" जगन् की उत्पत्ति (प्रथमवार में कही है ) और संस्कारों की विधि और ब्रह्मचारियों में ग्तधारण और स्नान की परम विधि ॥१११।। तया गुरु के अभिवादन का प्रकार और उपासनादि (दूसरे अध्याय मे लिये हैं) गुरु के पास से विद्याभ्यास कर स्त्री गमन और (ब्राह्मादि ८) विवाह का लक्षण, महायज्ञविधि और श्राद्ध कल्प जो अनादि समय स चला आता है ( तीसरे अध्याय का विषय ) है। (श्राद्ध को ही 'अनादि काल से सनातन करके लिसा है। इस से सूची उनाने बाजे की यह शङ्का मालकती है कि काई इसे नयीन न समझे)। "वृतीना लवणं चैव जातकम्य तानि च । मत्यामनं च शौच च द्रव्याणां शुद्धिमेव च ॥११॥ स्त्रीधर्मयोग तापस्य मोक्ष सन्यासमेत च। राक्षश्च धर्ममखिलं कार्याणा च विनिर्णयम् ॥११४॥' वृत्तियों के लक्षण और स्नातक के प्रत (चतुर्थ अध्याय में) भन्या अभक्ष्य, शौच द्रव्यों की शुद्धि ॥११३॥ स्त्रियों का धर्मोपाय (पांचवे अध्याय मे) वानप्रस्थ आदि तपस्वियों का धर्म और मोक्ष तथा संन्यास धर्म (षष्टाध्याय में ) और राजा का सम्पूर्ण धर्म (सप्तमाध्याय मे ) और कार्यों का निर्णय ( मुकदमा की छानबीन) ॥११४॥ 'साक्षिप्रश्नविधानं च धर्म स्त्रीसयोरपि ।