पृष्ठ:मनुस्मृति.pdf/८०

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प्रथमाध्याय विभागधर्म द्यूतञ्च कण्टकानां च शोधनम् ।। ११५॥ वैश्यशूटोपचार च संकीर्णानां च सम्भवम् । आपद्धर्मञ्च वर्णानां प्रायश्चित्तविधि तथा ॥११६॥" साक्षिप्रश्न (गवाहो के सवाल) (अष्टमाध्याय मे) स्त्री पुरुष के धन और विमाय (हिसा) तथा जुनारी चार इत्यादि का शोधन ।।११५।। वैश्य शूत्रों के धर्म का अनुष्ठान प्रकार (नवे अध्याय में) वर्णसङ्करों की उत्पत्ति और वर्णों का आपद्धर्म (दशमाध्याय में) और प्रायश्चित विधि (एकादश मे ) ||११|| "संसारगमनं चैव त्रिविधं कर्मसम्भवम | निःले यस कर्मणां च गुणोपपरीक्षणम् ॥१९७|| देशधर्माखाविधर्मान्कुलघमांश्च शाश्वतान् । पापडगाधमाश्च शास्त्रेऽम्मिन्नुरुषान्मनुः ॥११॥ देहान्तस्त्राति जो तीन प्रकार के कम ( उत्तम मध्यम अश्रम) से होती है और मोक्ष का स्वरूप और कमों के गुण्टाप की परीक्षा (द्वादश मे ) ॥११॥ देशधर्म (जो प्रचार जिस देश में बहुत कालसे चला आता है) और जो धर्म जाति में नियत है और जो कुल परम्परा से चला आता है और पापण्ड (वेद शास्त्र में निषिद्ध कर्म ) और गणधर्म इस शास्त्रमे । मनु ने कहे हैं।।११८॥" "यथेदमुक्तवान् शास्त्र पुरा पृष्ठो मनुर्नया । तयेदं यूयमप्यद्य मत्सकाशान्निबोधत ॥११॥ इति मानवे धर्मशास्त्र (भृगुप्रोक्तायां संहितायां ) प्रथमोऽध्यायः ॥१॥ इससे स्पष्ट है कि ये श्लाक अन्य ने सम्शत करके कभी सूचीपत्र बनाया है।