पृष्ठ:मनुस्मृति.pdf/८७

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मनुस्मृति भाषानुवाद देशों में उत्पन्न ब्राह्माण से पृथिवी के सम्पूर्ण मनुष्य अपने २ कामो की शिक्षा पावे ॥२०॥ हिमवद्विन्ध्ययोर्मध्ये यत्नाग्विनशनादपि । प्रत्यगेव प्रयागाच मध्यदेशः प्रकीर्तितः ॥२१॥ श्रासमुद्रात्तु नै पूर्वादासमुद्राच पश्चिमात् । तयोरेवान्तर गियोगवित विदुर्बुधाः ॥२२॥ हिमवान् और विन्ध्याचल के बीच जो सरस्वती के पूर्व और प्रयाग के पश्चिम में देश है, उम को मध्यदेश कहते हैं ।।२१॥ पूर्वसमुदसे पश्चिमसमुन्द्र तक और हिमाचलसे विन्ध्याचलके बीच में जो देश है. उसको विद्वान लोग आर्यावर्त कहते हैं ।।२२।। कृष्णसारस्तु चरति मगो यत्र स्वभावतः । सज्ञेयो यज्ञिया देशो म्लेच्छदेशस्त्वतः परः ॥२३॥ एतान् द्विजातया देशान् मंश्रयेरन् प्रयत्नतः । शुद्धस्तु यस्मिन्करिमन्या निवसेवति मर्पितः ॥२४॥ कृष्णसार मृग जहां स्वभावसे विचरवा है (अर्थान् वलात्कार से न छोड़ा हो ) वह यक्षिय देश है (अर्थात् यन करने योग्य देश) इस से परे जो देश है, वह म्लेच्छ देश है ॥२३॥ इस देश को द्विजाति लोग प्रयत्न के साथ आनय करें और शूद्र चाहे किसी देश मे वृत्तिपीडित हुवा निवास करे । (यद्यपि धर्मानुष्ठान मनुष्य के अधीन है देश के अधीन नहीं वथापि जिस देश मे धर्मात्मा लोग अधिक रहते है, वहां धर्मानुठान मे बाधा कम होती है और धर्मानुष्ठान के साधन सुगमता से मिलते हैं, इस लिये देश का धर्म से सम्बन्ध हो,जाता है। पूर्वजों ने स्वाभाविक (नचुरल) रीति पर भी इस देश को अच्छा.और