पृष्ठ:मनुस्मृति.pdf/८८

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द्वितीयाध्याय चमादि धर्मानुमान के लिये उनम जान कर यहां ही रहना स्वीकार किया था। इसी में मनु ने १७ से २३ श्लोक तक धर्म के उपयोगी देशका वर्णन किया है और २३ वे मे तो यज्ञयोन्य देशकी पहचान ही वतलाई है कि 'कृष्णमार" मृग (जिस का चर्म ऊपर से काला होता है) जिस देश में स्वभाव से उत्पन्न हो और विचरे म देश को जाना कि यह यजयोग्य देश है। इसमें वे बूंटी उत्पन्न होनी हैं जिन से यनानुष्टान होता है ) ॥२४॥ एषा धर्मस्य चो योनिः समासेन प्रकीर्तिता। संभवश्वास्य सनस्य वर्णवामित्रोथत ॥२५॥ मैडिकः कर्मभिः पुण्यैर्निपेकादिद्विजन्मनाम् । कार्य: शरीरसंस्कार: पावन प्रत्य चेह च ॥२६॥ यह धर्म की योनि (अयान जानने का कारण ) और इम सब (जगन्) की उत्पत्ति तुमसे मंक्षेप से कही, अब वर्णवों को सुनो IR वैदिक जो पुण्य कर्म हैं उन से ब्राह्मणादि तीन वर्षों का (गर्भावानादि) शरीर संकार, जो दोनोलाको पवित्र करने वाला है करना चाहिये रिक्षा गा मिर्जानकर्मचौडमौजीनिवन्धनः । वैजिक गार्मिकं चैनो द्विजानामपमृज्यते ॥२७|| स्वाध्यायेन व्रतहोमेस्त्रविद्येनेज्यया सुतैः। महायज्ञेश्य यज्ञैश्च ब्राह्मीयं क्रियते तनुः ॥ २८॥ गर्भाधान संस्कार जातकर्म चूडाकर्म और मौलीबन्धन इनमें के होमों से द्विजों के गर्भ और वीज के दोषादि की शुद्धि होती है IPI वेदत्रयीका पढ़ना, व्रत होम, इज्याकर्म, पुत्रोत्सादनादि तथा पच महायज्ञों और यनों से यह तनु ब्राह्मी होताहै। (हाम-पादि