पृष्ठ:मनुस्मृति.pdf/९

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मनुस्मृति भ०२ भाषानुवाद बाल पकने से वृद्ध नहीं होता किन्नु विद्या से बिना पडे ब्राह्मणकुलायन की निन्दा मधुरवाणी से हो उपदेशादि करे कटु से नही ब्राह्मण मान की इच्छा न करे इत्यादि द्विजों का वेदाध्ययन स्वाध्यायादि की भावश्यकता १६५-१६ दिनों के तीन जन्म वेदोक्त है दूसरे जन्म में माना गायत्री, पिता आचार्य है भाचार्य को पिता यो कहते हैं कि वह वेद देना है उपनयन से पूर्व वेदाध्ययन का अधिकार १७२-१७३ बन समय भी अपने २ विहित दण्डमेव कादि धारण १७४ ब्रह्मचारी को गुरुकुलबास के मेवनीय नियम १७५-१८२ मिक्षा और होम की आवश्यकता १८३-१८८ भिक्षा की प्रशंसा में दो अधिक लोक ८ पुस्तकों से मिले देवपित्र्यादि कार्य में जन के तुल्य भोजन करे यह (1८८ का) नियम ब्राह्मण को ही है गुरु के बिना कहे भी विद्योगार्जन में यरन करे गुरु से पढने समय तथा अन्य समय कैम बैठना उठना आदि करे १९२-२०० १ पुस्तक में यहा अधिक श्लोक मिला है गुरुनिन्दकादि की निन्दा २०१ गुरु को दूर से प्रणाम न करे, न स्त्री के समीप में, किम भोर बैठे आदि नियम गुरु के गुरु से कैसे बरते इत्यादि २०५-२०८ गुरु पुत्र के चरण दाधना आदि न करे . २०२-२०४