पृष्ठ:मनुस्मृति.pdf/९०

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द्वितीयाऽध्याय ८७ और स्त्रियों के नाम सुख मे उच्चारण करने योग्य हो । पर न हो जिसके अनर सष्ट होवें और प्रीति का देने वाला और मद्दलयाची, दीर्घ स्वर जिसके अन्त में हो और पाशीर्वागत्मक शब्द मे युक्त हो, पमा रक्ने (जैसे यशोदा देवी इत्यादि) ॥३॥ चतुर्थ माल में बालक को घर से बाहर निकालने का मंकार और छठे मास में अन्नप्राशन संस्कार करावे वा जिम प्रकार कुलाचार हो. उस समय करे ॥३४॥ चूडाकर्म द्विजातीन सर्वेपामेव धर्मतः । प्रथमेऽन्दे तृतीये या कर्तव्यं श्रुतिचोदनात् ॥३५॥ गर्भाप्टमेद कुर्वीत ब्रामणस्योपनायनम् । गदिकादशे गजो गर्भात्त द्वादशे विशः ॥३६॥ ब्राह्मण क्षत्रिय वैश्य का चूडाकर्म धर्मानुसार प्रथम वा तीसरे वर्ष में वेद की आमा से करना चाहिये ।।३५ गर्भ मे अष्ठम वर्ष में ब्राह्मण का और गर्भ मे एकादश में क्षत्रिय का और द्वादश में वैश्य का उपनयन करे। ब्रह्मवर्चसकामस्य कार्य विप्रम्य एञ्चमे । रानो बलार्थिनः पष्टे वैश्यस्वेहार्थिनाऽएमे ॥३७॥ श्रापोडशानामणस्य सावित्री नातिवर्तते । प्रादाक्शिात्क्षत्रबन्धोराचतुर्निशतेनिसः ॥३८॥ वेदाध्ययन के अर्थ नानादिसे घड़ा तेज ब्रह्मवर्चस कहाता है। उसकी इच्छा करने वाले वित्र का पांचवें वर्षमे उपनयन करे और वलार्थी क्षत्रियका छठे वर्ष और कृप्यादि कर्मकी इच्छा वाले वैश्य का ८३ में उपनयन करे ॥३७॥ सोलह वर्ष पर्यन्त ब्राह्मण की