पृष्ठ:मरी-खाली की हाय.djvu/१२५

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वहीं खड़ा रहा ? 0:-(:) निश्चल और निर्भय, सीधा तीर के समान । कुछ पर्वाह नहीं । सुलगने दे, धधकने दे, और आकाश तक ज्वाला की लपलपाती लहरें उठने दे । वहाँ तेरे प्यार जी तोड़ रहे हैं, घायल हो रहे हैं, जूझ रहे हैं, तू उधर मत देख । नये योद्धाओं को भेज खबरदार ! आवाज करारी बनाये रहना, स्वर काँपने न पाव श्राखों में पानी न आने पाये। यह युद्ध है । युद्ध में जूझ मरना उतनी वीरता नहीं है । सच्ची वीरता-प्यारों के बलिदान को उत्फुल्ल नयनों से देखने में है।