पृष्ठ:मरी-खाली की हाय.djvu/१२९

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( १२० ) थोड़ी देर बाद एक और ब्यक्ति आकर युवक के पास बैठ गया और स्नेह भरे स्वर में पूछा- "वह फिर आया था क्या भय्या ?" युवक चौंक उठा और हँस पड़ा दूसरे व्यक्ति ने फिर कहा- "लल्लू कहता था वह बाबू आया है।" "हाँ आया तो था। "कुछ झगड़ा तो नहीं हुआ ?" "कुछ नहीं मैंने समझा दिया। वह १५ दिन को मान गया । कुछ अधिक व्याज का वादा करने से ही वह सन्तुष्ट हो गया।" "पर भैय्या, यह कर्ज चुकेगा कैसे ?" "सब चुक जायगा, तुम चिन्ता क्यों करते हो ? लल्ल खा चुका ?" "कहाँ ? वह बिना तुम्हारे थोड़े ही खायगा।" "बड़ा पाजी है । चलो फिर खायें। ओह ! भूख के मारे पेट में चूहे कूद रहे हैं।" दोनों चल दिए। युवक कनखियों से दूसरे व्यक्ति को देख रहा था। और वह अत्यन्त चिन्तित भाव से नीचा सिर किये कुछ सोचता जाता था । हठात् उसने सिर उठा कर कहा- 'एक काम किया जाय भैय्या, वह गया किधर को है ? मैं उसे दौड़ कर बुला लाता हूँ।"