पृष्ठ:मरी-खाली की हाय.djvu/१३१

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

( १२२ ) एक साथ भोजन करने बैठे। (२) युवक का नाम और व्यवसाय बताने की आवश्यकता नहीं। उवके मित्र का नाम था हरसरनदास । इसकी आयु थी लग- भग ३५ वर्ष एकाध बाल पकने लगा था, शरीर का दुबला पतला भद्दा सा आदमी था । बच्चा इसी ब्यक्ति का एक मात्र पुत्र था बच्चे की माता हरसरन की दूसरी , पत्नी श्री; वह सुन्दर, वस्त्र और अत्यन्त विनोदी स्वाभाव की स्त्री थी। युवक न इसकी जाति का था न बिरादरी का। वह एक अनाथ बालक के तौर पर इस गाँव में अल्पावस्था में आया और यही बड़ा हुआ था। बीच के सात आठ वर्ष उसने दिल्ली में व्यतीत किये थे । इन सात आठ वर्षों का उसका गोपनीय इतिहास कोई नहीं जानता । लोग तरह २ के अन्दाजा लगाया करते थे। कहता था वह कालिज तक की पढ़ाई पास कर चुका । कोई कहता था वह कोई बड़ा कारबारी हो गया है । पर युवक सिवा १०-५ दिनों के लिये बीच २ में गैर हाजिर हो जाने के अपने कार बार के सम्बन्ध में कुछ प्रमाण नहीं रखता था । अलबन्ता वह गाँव भर में प्रिय और आदरणीय अवश्य माना जाता था। वह सबकी सब प्रकार की सेवा करता। उसका चरित्र निर्मल और उच्च था। उसकी भाषा संयत विनम और स्वभाव अत्यन्त सरल था। गाँव वाले उसे मानते प्यार करते