यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
और बाड़े वक्त उसी से सलाह मशवरा भी करते थे। हर सरन पर उसकी योग्यता' देशभक्ति, त्याग और चरित्र का काफी प्रभाव था । हरसरन के बच्चे और उस युवक का प्राण तो एक ही था वह और उसकी स्त्री दोनों ही युवक की मानों पूजा करते हैं । युवक का घर नहीं कुटम्ब नहीं, सगे सम्बन्धी भी नहीं वह हरसन के ही घर रहता वहीं खाता सोता मानों वह उसी घर का व्यक्ति है। गरीब हरसरन तन मन से युवक के सुख दुख का ख्याल रखता था । भोजन के बाद युवक ने कहा- "देखो भाई हरसरन, आज मेरा शहर जाने का इरादा है।" था "क्यों !" " "एक नौकरी लग गई है, अब शायद वहीं रहना होगा।" "कितने की नौकरी है ?" "५०) ६०) रूपये तो मिल ही जावेंगे।" "बस इतने ही." "नौकरी पाराम की भी तो है। "क्या सरकारी है ? "राम राम, क्या मैं सरकारी नौकरी करूंगा ? "वही तो, फिर चलो हम भी शहर चलें, वहीं कुछ काम धन्धा कर लेंगे। ..