पृष्ठ:मरी-खाली की हाय.djvu/१३३

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( १२४ ) "तुम वहाँ भला क्या करोगे ?" "हम तुम्हें जरा भी कष्ट न देंगे, अपने लिये कोई काम (द लेंगे, क्या कोई नौकरी नहीं मिल जायगी ?" "नहीं ऐसा न होगा। तुम झमट में पड़ जाओगे। यहाँ मौज करो मैं बराबर आता रहू गा!" इतने में हरसरनदास की पत्नी ने आकर कहा-"वहाँ कहाँ खाओगे! कहाँ रहोगे ! फिर लल्लू तुम्हारे बिना कैसे रहेगा !" बहुत वाद विवाद के बाद दूसरे दिन चारों प्राणियों ने कूच कर दिया और दिल्ली के एक मुहले में सारधाण मकान किराये पर लेकर रहने लगे। हरसरन दास किसी कपड़े की दुकान में २०) मासिक नौकर हो गया । यहाँ रहते इन लोगों को दो मास व्यतीत हो गये । हम नहीं कह सकते कि युवक ने कुछ वेतन लाकर हरसरन के हाथ पर धरा या नहीं। हाँ इतना हम जानते हैं कि अब भी हरसरन ही युवक को खिलाता और अपने घर में रखता है। आधी रात व्यतीत हो रही थी। चारों ओर अंधेरा छाया हुआ था, थोड़ी वर्षा हो जाने के कारण सर्दी भी चमक गई थी। आज युवक अभी तक नहीं आया था, बच्चा उसकी राह देखते २ सो गया था और दोनों स्त्री पुरुष बिना सोये युवक