( १२५ ) की प्रतीक्षा कर रहे थे। इधर कई दिनों से युवक का समय पर आना नहीं हो रहा था। वह बहुत व्यस्त और चिन्तित भी रहता था। हरसरन बहुत चेष्टा करने पर भी उसके हृद्गत भावों को नहीं जान सका था । पर वह इतना जरूर समझ गया था कि कुछ भारी भेद अवश्य है । मेरा यह मित्र किसी असाधारण काम में जुटा है। पर वह उस पर इतनी भक्ति रखता था कि वह बिना भेद जाने ही उसका सहायक और सम- र्थक बन गया या। लगभग १ बजे युवक आया और धीमे स्वर से कहा, "हर- सरन भाभी को दूसरे कमरे में भेज दो। अभी कुछ दोस्त यहाँ आवेंगे । एक मित्र घायल हो गया है। " हसरन लपक कर व्यवस्था करने लगा। क्षण भर ही में दो व्यक्ति एक अल्यः व्यस्क युवक को पीठ पर लादे भीतर घुस आये। यह बेहोश था, उसका एक हाथ बिल्कुल ही उड़ गया था मुह झुलस गया था और दूसरे दोनों आदमियों में से एक थोड़ा घायल था। उनके वस्त्र कालिक और खून से भरे थे। बेहोश ब्यक्ति को चारपाई पर लिटा कर युवक ने हरसरन से कहा-"दरवाजा बन्द कर दो।" इसके बाद गर्म पानी करके उन्होंने मूर्छित युवक के घावों को धोया और पट्टी बांधी। दूसरे घायल की भी पट्टी आदि बाँधी
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