पृष्ठ:मरी-खाली की हाय.djvu/१५२

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सो क्या ( १४३ ) मैंने अपनी जमीन जायदाद मिट्टी में मिलाई घर द्वार छोड़ उसके लिए अधम नौकरी की इसलिये कि मैं उसके त्याग पर देशप्रेम पर मोहित था। वह देवदूत की भाँति बोलता था । स्वर्गीय प्रभा उसके नेत्रों में थी। मैं मूर्ख क्या उसके लिये इतना भी न करता वह देश की सेवा में संलग्न था, मैंने अपने को उसकी सेवा में संलग्न किया। वह देश के लिए सर्वस्व त्याग चुका था और मैंने उसके लिये सर्वस्व त्यागा, इसीलिय ? नहीं, नहीं, ऐसी बातें सोचना भी पाप है। सर्प देवता हा सकता है पर देवता सर्प नहीं हो सकता । उसका पुत्र ? रामराम, क्या मेरी स्त्री व्यभिचारणी की आँखें ऐसी होती हैं ? व्यभिचारणी क्या इस तरह हसा करती है ? एसी तत्पर और निसंकोच होती है ? ईश्वर ! मैं क्या सोच रहा हूँ। आज मैंने समझा कि मेरी आत्मा कितनी पापी है। हाँ, यह हो सकता है कि वह मुझसे हजार गुना अधिक उसे प्यार करती हो। वह इस योग्य है। पर वह प्यार क्या अपवित्र ही हो सकता है ? उसका पुत्र ? उसका पुत्र ?? हरसरन ने अपने सिर में ५ घू से मारे। उसने कपड़े फाड़ डाले और वह भूमि पर लोटने और तड़पने लगा। इसके बाद वह दीवार के पास गया, दिक् दिक् टिक् शब्द किया। एक बार दो बार तीन बार, पर कुछ भी उत्तर नहीं आया। वह तड़पती हुई मछली की भाँति भूमि में पड़ा ...