( १५३ ) अन्त में एक, अधिकारी ने कहा-"जिस काम के लिये थे, उसका भी तो ख्याल रखो। वह सबूत ?" 'हाँ, वह सबूत । उसने तस्वीर दूर फेंक दी और बकू. दृष्टि से बड़ी देर तक अधिकारी को घूरता और बड़ बढ़ाता रहा । फिर उसने कहा-'अच्छि बात है. तब तुम उसे फाँसी दोगे ? अब मैं तुम्हे सबूत देता हूँ। और ऐसा सबूत देता हूँ जो किसी ने नहीं दिया होगा । मैं अब मुखबिर हूँ।" इसके बाद उसने एक आल्मारी का ताला तोड़ डाला और उसमें से एक छोटी सन्दूकची निकाली । अधिकारी सतर्क हो गये। क्या आश्चर्य है पिस्तौल या बम से हमला कर दे । बक्स को तोड़ कर हरसरन ने एक छोटी सी शीशी निकाली और उसे अधिकारियों को दिखाते हुए कहा- "यह बड़ा भारी सबूत है। मैं अभी तुम्हें दिखा दुगा कि इस में क्या करामात है । तुम लोग अपनी २ जग पर खड़े रहो । इतना कह कर देखते ही देखते उलने शोशी को मुह में उँडेल लिया और शीशी फेंक दी। अधिकारीगण अब समझे और एक दूसरे का मुंह देखने लगे। हरसरन हसने लगा। हँसते २ कहा, 'बुरा हो तुम्हारा, तुम क्या मुझे यह विश्वास दिलाना चाहते थे कि उसने मेरी स्त्री को कुमार्गामिनी बनाया । सम्भव है। पर उसने ऐसा किया
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