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पृष्ठ:मरी-खाली की हाय.djvu/१७९

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जवाहर * तप और त्याग के देवता की भाँति, तुम विश्व की दलित जातियों का प्रतिनिधित्व करते हुए न आँधी देखते हो न मेह ? आगे बढ़ते ही जाते हो ? जीवन के इस पार का सब कुछ तुम त्याग चुके हो और उस पार तुम्हारी सहधर्मिणी की वेदनाएँ बिखरी हुई हैं । इस पार से उस पार तक हम केवल तुम्हीं को देख रहे हैं ओ ! भारत के यौवनधन ! ओ ! देश के उद्ग्रीय ब्राह्मण ! आज देश के प्राण सिमट कर तुझमें प्रविष्ट हो रहे हैं। तेरी परचिन्ता से विकल, अस्थिर, चल मूर्ति को देख कर हमारे हृदय में आशा और उत्साह की लहर पैदा होती है । तुमने हम सबसे अधिक विश्वदर्शन किया है । तुमने हम 1 ॐ ये फूल श्री जवाहरलाल पर उस समय बखेरे गये थे जब विदेश में उनकी पत्नी मृत्यु शैयापर सिसक रही थी और श्री जवाहरलाल जेल के सीखचों में छटपटा रहे थे।