( ३२ ) "क्या आप डाक्टर साहब हैं ? मैं धनपतराय हूँ।" "जी हाँ, कहिये।" ओह मेरी स्त्री के मरा बच्चा हुआ है । वह बेहोश है, कृपा कर अभी बाइये, वरना उसके प्राण बचना कठिन हैं। "परन्तु यह तो बड़ा कठिन है, शहर में तो मार्शला हो रहा है, कौन इस समय घर से बाहर निकलेगा ? जान किसे भारी है। यह डायर की अमलदारी है।" "परन्तु डाक्टर साहब ! वह मर रही है, क्या आप भी मेरा साथ न देगें । मैं आपका २० वर्ष का पुराना मित्र, सहपाठी और भाई हूँ। “युवक का माथा सिकुड़ गया। उसके होंठ काँपने लगे।" "हलो" "जी हाँ "वह ठण्डी हो रही है। घर की. स्त्रियों का रोना बन्द करना मुझे कठिन हो रहा है।' "मैं आ रहा हूँ।" डाक्टर ने जल्दी से वस्त्र पहने और वे उस शून्य राज मार्ग में अपनी ही पदध्वनि से स्वयं चौकन्ने होते हुए चले। नाके पर पहुँच कर गोरे सार्जन्ट ने बन्दूक का कुन्दा उनकी और घुमा कर कहा-"कौन ?"
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