पृष्ठ:मरी-खाली की हाय.djvu/४६

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"पंजाबी नहीं, भारत का कोई भी सच्चा सपूत बतावे कि उसने इस अपमान का कोई बदला लिया है ? मैंने सुना है कि वहाँ मर्दो को कीड़ों की तरह रेंग कर चलाया था और स्त्रियों की गुप्तेन्द्रियों में लकड़ियाँ डाल कर उन्हें कुत्ती-मक्खी और गधी कहा गया था। अरे देश के नौजवानो! घे किस की मां बहिनें और बेटियाँ थीं ! उन पिताओं, भाइयों और पतियों ने क्या किया है ?" भीड़ में लोग रो रहे थे । एक सिसकारी आ रही थी। शेर ने ललकार कर कहा- "हाय ! मुझे उस दिन उस स्थान पर मौत नहीं नसीब हुई ? अगर मैं जानता कि पंजाब के शेर बच्चे भी अब ऐसे बेशर्म हो गये हैं तो मैं वहीं जहर खा लेता और यहाँ अपना मुह न दिखाता जनता बसाती समुद्र की तरह उथल-पुथल हो चली । बहिन बेटियाँ सिसक-सिसक कर रो पड़ी, और वृद्ध नर-रत्न तिलक " की अश्रु-धारा बह चली। पंजाब केशरी का कण्ठ-स्वर काँपा । वह अब बोलने में असमर्थ होकर नीची गर्दन किये बैठ गये। सहस्रों कण्ठों से ध्वनि निकली। पंजाब केशरी की जय ! हम पंजाब केशरी की आज्ञा से प्राण देने को तैयार हैं।