पृष्ठ:मरी-खाली की हाय.djvu/४७

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"स्वामी श्रद्धानन्द मारे गये।" "क्या कहते हो?" "अभी फोन आया है, एक मुसलमान ने उन्हें गोली से मार डाला | वह पकड़ा गया है ?" "पकड़ा गया है ? यह कहते-कहते लाला लाजपतराय उठ खड़े हुये।" इसी समय ३-४ भद्र पुरुषों ने प्रवेश करके समाचार की सत्यता बयान करके कहा-"वहाँ जाने की चेष्टा न करें। मार्ग अशान्त है, नगर में उपद्रव होने की अशङ्का है।" लाला जी धीरे-धीरे बैठ गये। विषाद के स्थान पर उनके मुख पर एक हास्य रेखा और नेत्रों में एक नई ज्योति का उदय हुआ उन्होंने कहा- "यह सम्भव ही नहीं कि मुझे यह मौत नसीब हो ! मैं तो अब इतना बढ़ा हो गया हूँ कि चाहे जब चुपचाप मौत धोखा दे जाय । कुछ उम्र से कुछ रोग और कष्ट से ।" परन्तु, एक भद्र पुरुष ने कहा-"लाला जो ! आप तो अब उतने कष्ट में नहीं है। ऐसेम्बली में तो कुर्सियाँ गद्देदार और उन में बिजली के हीटर लगे होते हैं।" "लाला जी ब्यङ्ग को पीकर बोले "यह सब कुछ होने पर भी वैसा कुछ सुख नहीं है।"