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"अभी उस दिन तो आप १ लाख रुपये अनाथों के लिए और गढ़वाल के लिए दे चुके हैं।" "यह उस रकम से बचा हुआ धन है।" "आगे कैसे काम चलेगा ?" "आगे देखा जायगा।" "१॥ लाख अस्पताल को भी आप दे चुके हैं।" "वह तो सब जायदाद के बेचने से ही हो जायगा।" "लाला जी ! आपके बाल-बच्चे भी तो हैं" लाला जी ने कठिनता से आँसू रोक कर कहा-मेरे बच्चों ही के लिए तो यह सब कुछ है । "ओह ! लाला जी ! आप को वे स्वार्थी बताते हैं।" "ठीक ही है। "आप देवता हैं।" “जी. चाहे जो समझ लो-परन्तु यह रुपया कल ही भिजवा देना। अब शरीर थक गया है, अपना अपना काम सम्हाल लो अब युवकों का श्रागे बढ़ना उपयुक्त है। वे सच कहते हैं कि मैं आराम तलब हो गया हूँ। ६ सन्नाटा सा फैल गया है। पंजाब की जान सी निकल गई | इस शरीर में कहाँ वह चैतन्यता थी। आम उसके नष्ट होने अब