पृष्ठ:मरी-खाली की हाय.djvu/५२

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

दिवाली * दिवाली! अमावस्या के गाद अन्धकार में असंख्य दीपावली के प्रकाश को लेकर क्या देखने को तुम हमारे घर आई हो ? जरा ठहरो, जो तुम अपने साथ भारत की भाग्य लक्ष्मी को लाई हो, जो तुम्हारे दीपकों में बिना अग्नि का प्रकाश हो, जो तुम्हारे गृह दीपक हमारे स्नेह को चूस कर, हमारे घरों को काजल से काला न कर जाएँ, क्षुद्र किन्तु उत्साही प्रेमी पतंगों कोसी तुम्हारे दीपकों से जल मरने का भय न हो तो तुम आओ। हम लज्जा और ग्लानि को भूल कर मलिन अन्धकार में ही तुम्हारा सस्कार करेंगे। के सन् २१ में जब देश व्यापी अन्दोलन चला था तब एक बार दीपावली के दिए लेखक ने नहीं जलाए थे और ये पंक्तियाँ लिखी थीं।