पृष्ठ:मरी-खाली की हाय.djvu/५३

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पर जो ऐमा न हो तो तू जा । हमारे घरों में इस ज्वलन्त प्रकाश से देखने योग्य कुछ नहीं है । हमारा यह अन्धकार कुछ बरा भी नहीं है। इस ने हमें, हमारी मलीनता को, हमारी हीनता और नग्नता को छिपा रखा है। हमारे नेत्रों की निस्तेज ज्योति उसे सह भी गई है। ना। हम पर प्रकाश मत डाल । हम नंगे हैं। हम भूखे हैं । हम रोगी और निराश्रय हैं। थके हुये, मरे हुये, और तिरस्कृत हैं। लांछित हैं स्वार्थी पापी और भीरु हैं। हम पूर्वजों की अतुल सम्पत्ति को नाश करने वाली सन्तान हैं। अपने बच्चों को भिखारी बनाने वाले माता पिता हैं। रूदि की वेदी पर स्त्रियों को बलिदान का पशु बनाने वाले पुजारी है। हम खानदानी बाप के कुकर्मी बेटे हैं। ना। ना । हमें अन्धकार में ही रहने दे । हमें अन्धेरे में ही मुंह छिपाने दे। हमें लज्जा आती है। हम किसी को नहीं देखना चाहते, परस्पर अपने को भी नहीं देखना चाहते । हमें अनन्त काल तक तारागणों से भी हीन, चैतन्य विहीन घोर अन्धकार मयी अमावस्या की ही रात्रि पसन्द है हाय !!!