पृष्ठ:मरी-खाली की हाय.djvu/५६

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bkreishan अनूप शहर के घाट पर गंगा के नाम के साथ सदा का आनन्द मय परिचय था भगवती भागीरथी हर हर शब्द करती हुई बही चली जा रही थी। शीत काल का प्रिय मध्यान्ह हँस रहा था, हम लोग कड़ाके की सर्दी में भोर के तड़के से यात्रा को निकले थे और इस समय गंगा के तीर पर पहुँचे थे बचपन से अब तक गंगा के तीर पर चांदी की रेती में अनेक सफेद रातें कई रंगों में व्यतीत की हैं पर इन दिनों गंगा के स्मर्ण में रेत मिल गया था। इस बार इस चिर परिचित घाट को देख कर हजारों आनन्द स्मृतियों को बलात् विदीर्ण करके एक असह्य विषाद स्मृति ने नेत्रों को सजल कर दिया। Come 1 ये पंक्तियाँ अनूपशहर ने शोक दग्ध अवस्था में लिखी थीं। सन् २० में के घाट पर लेखक