पृष्ठ:मरी-खाली की हाय.djvu/६४

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मैंने बातें करने के विचार से कहा-"आपको कुछ चाहिए तो नहीं ?" "नहीं।" उत्तर जैसे संक्षिप्त था, वैसा ही रूखा भी था। ऐसी अद्भुत स्त्री तो देखी नहीं। मैंने सोचा, बड़ा बुरा किया, जो ठहराने का वचन दिया। न-जाने कौन है, पर कोई भी हो, शिक्षिता है, और बुरे विचारों की भी नहीं है। अवश्य कोई कुलीन स्त्री है। कुछ खानगी कारणों से यहाँ आई होगी। अंग्रेजी पढ़ी लिखी लड़कियाँ ऐसी ही उद्धृत हो जाती हैं । मैं यह सोच ही रहा था कि ५-७ आदमी गाड़ी पर चढ़ आए इनमें एक पुलिस का दारोगा भी था। दो खुफ़िया पुलिस के सिपाही थे। दारोगा ने युवती की सीट पर बैठकर पूछा- "आप कहाँ जायँगी ?" वह बोली नहीं। दारोगा साहब ने साथ के कान्स्टेबिल से कुछ संकेत किया और फिर पूछा- "आपने सुना नहीं, मैंने आपसे पूछा, आप कहाँ जायँगी ?" इस बार उसने दारोगा की ओर घूर कर देखा, और शुद्ध अंग्रेजी में कहा-क्या आप टिकिट-चेकर हैं, या रेल के कोई कर्मचारी, आप क्यों पूछते हैं । और किस अधिकार से ? इस- के बाद उसने मेरी ओर देख कर कुछ कोप-पूर्ण स्वर में, शुद्ध