पृष्ठ:मरी-खाली की हाय.djvu/६५

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झैप हिन्दी भाषा में, कहा- "तुम चुपचाप बैठे तमाशा देख रहे हो, और मह आदमी बिना कारण मुझसे सवाल करता जा रहा है। इस बेशर्म को स्त्रियों से फालतू बातचीत करते जरा भी झिझक नहीं।" मैं चौंक पड़ा। दारोगा मेरी ओर जिज्ञासा-भरी दृष्टि से देखने लगा। दो और भी भद्र पुरुष, जो डिब्बे में आ गए थे. वे भी युवती के करारे उत्तर से चमत्कृत हो गए थे। मैंने सम्भल कर कहा- "यह मेरी बहन है, हम लोग मेरठ एक शादी में जा रहे हैं, आप क्या जानना चाहते हैं ? दारोगा एकदम गया, वह शायद मुझे जानता था। युवती ने एक क्षण मेरी ओर देखा--उसमें होठ काँपे, और फिर वह खिड़की से बाहर ताकने लगी। भद्र पुरुषों ने कहा--"आप चाहे भी जो हों, पर स्त्रियों से ऐसा व्यवहार न करना चाहिए। दारोगा ने कहा--"श्राप लोग और वकील साहब और बहन जी भी मुझे क्षमा करें- मैंने बड़ी भूल की । पर मेरा मतलब कुछ और ही था।" मैंने शेर होकर कहा-"आप लोगों का हमेशा और ही मतलब हुआ करता है, पर भले घर की बहन बेटियों की कुछ इज्जत- आबरू होती है जनाब ?" दारोगा साहब बहुत ही बिलैया दण्डवत् करने लगे। बीच में एक स्टेशन और आया। मैं अभी