( २ ) और एक बार तुम आये थे, यही तुम्हारा ध्रुव श्याम रूप श्रा, यही तुम्हारा चिनिन्दित अभ्यास्त हास्य था, यही अक्ष एण मस्ती थी। इसी तरह तुमने तब भी भारत के नर नारी को मोह लिया था, कृष्ण जमुना इसकी साक्षी है---एक बार समस्त विश्व के साम्राज्य, पृथ्वी भर के राज मुकुट तुम्हारी उंगली के संकेत पर-तुम्हारी भृकुटी के चिलास पर~-तुम्हारी हुंकार की ताल पर मृत्यु के पथ पर नाच चुके हैं-~-उस समय भी तुमने शस्त्र ग्रहण न करने की शपथ ली थी। और उस समय भी तुम हमें मझधार में ही छोड़ भागे थे। धर्म की संस्थापना का, दुष्कृतों के विनाश का क्या वास्तव में और कोई मार्ग ही नहीं हैं ? क्या प्रभु को बलिदान हुए बिना यह कार्य नहीं हो सकता है ? ना। इस बार हम तुम्हें इस तरह न जाने देंगे। हम अपनी आत्माओं की शपथ खाकर कहते है कि तुम इस बार चुप चाप न जाने पाओगे। श्याह और सफ़ेद करना ही होगा। इन्हीं हाथों से, इसी बार, हम बार २ तुम्हें कहाँ पायेंगे ? वह नव विधवाओं के अविकसित, किन्तु मलीन मुखों पर कभी न रुकने वाले आँसुओं की भरी आँखें देखो, क्या तुम इसे श्रोस से भरे हुए गुलाब की शोभा समझते हो वह-जीवन की अन्तिम घड़ियों में-गोद से बल्कि संसार से उठा दिये गये
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