पृष्ठ:मल्लिकादेवी.djvu/१००

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(३८)
[सत्रहवां
मल्लिकादेवी।

पाठक! आपने एक ग्राम के एक प्रकोष्ठ में सुशीला और मल्लिका को देखा था। सुशीला इसी घटना से मुक्त होकरमल्लिका के संग गई थी; और सरला इस घटना के अनतर, जो प्रौढ़ा से आज्ञा मागती थी, वह भी आपको स्मरण होगा ! जिस दिन सरला ने नरेन्द्र से मिलने की प्रतिज्ञा की थी,उसी दिन वह प्रौढ़ा से आज्ञा लेकर नरेन्द्र के दर्शनार्थ वहिर्गत हुई थी। पर यह साक्षात आगे होगा; अभी धैर्य धारण करिए।

प्रातःकाल सब कोई नित्यकृत्य से निश्चिन्त होकर यात्रा का उद्योग कर रहे थे, इसी अवसर में बड़गसिंह ने आकर कहा,-

"महाराज ! उन लोगों को एक ग्राम में निरापद पहुंचा आए।"

नरेन्द्र,-"अच्छा, अब उस विषय को छोड कर यात्रा करो!"

अनंतर सब कोई वहांसे आगे बढ़े और नरेन्द्र ने खड्गसिंह से मल्लिका का पता कुछ भी न पूछा।"

पाठक! मन्त्री महाशय की कन्या मलिका जब अपने माता पिता के यहां थी, तो उसे देखने का अवसर नरेद्रसिंह को बहुतही कम मिलता था । यही कारण था कि वे मल्लिका से मिलने पर उसे पहचान नही सके थे । किन्तु मत्री बिनोदसिंह ने एक तो सुशीला से कुछ वृत्तान्त सुना था, दूसरे वे मल्लिका को चीन्हते थे; क्योंकि वह (मल्लिका ) उनके ताऊकी ही तो लडकी थी। सो विनोदसिह ने देखते ही मल्लिका और सरला को पहचान लिया था, पर उस समय सरला ने उनकी ओर कुछ ऐसा इशारा किया था कि जिसे समझ फर वे-बिलकुल अनजान बन गए थे और नरेन्द्र से यों पूछने लगे थे कि,-"ये स्त्रिया कौन थीं।