सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:मल्लिकादेवी.djvu/९९

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
परिच्छेद]
(९७)
वङ्गसरोजिनी।

सरला,-"यदि आप उन लोगों से हमारे स्थान का पता न पूछैं, जो कि हमारे संग जायगे । और वे भी विश्वस्थ हो कि इस पात से आपको विज्ञ न करें।"

नरेन्द्र ने अट्टहास्य करके कहा,-"सरला! धन्य हो! तुम्हारी जैसी आश्चर्य-रमणी हमने आज तक नहीं देखी थी!"

सरला,-"मैं निःसदेह आपसे बड़ी लाज्जित हूं, किन्तु क्या करू, निरुपाय हूं!"

नरेन्द्र,-"अस्तु ! अब कहां, और कब भेंट होगी ?"

सरला,-"उसो मन्दिर में, आगामी रविवार को; और उसी दिन आप हम लोगों का सब परिचय पाथेंगे!"

नरेन्द्र,-"जैसी तुम्हारी इच्छा, हम उस दिन अवश्य वहीं, उसी समय मिलेंगे!"

आनन्नर सरला, मल्लिका और सुशीला शिक्षिका पर आरुढ़ हुई और खड्गसिंह को समझा बुझाकर नरेन्द्रसिंह ने कुछ सैनिकों के साथ सरला के सङ्ग कर दिया।

उनके जानेपर नरेन्द्रसिंह सरला और मल्लिका के विषय में जितना वे जानते थे,विनोद कोसुनाकर बोले,-"मित्र! यह विचित्र लीला है!!!"

विनोद,-"मित्र! यह व्यापार क्या है ? ये स्त्रियां कौन थीं ?

नरेन्द्र,-"वयस्य ! निश्चय जानों, हमें भी इनका ठीक ठीक वृत्तान्त अभी तक विदित नहीं है!"

बिनोद,-"भई ! अवश्य यह बड़े आश्चर्य का विषय है !!

नरेन्द्र,-"देखें ! भागे क्या क्या फल फलता है ! "

बिनोद,-"ये स्त्रियां कही धोखा न दें, क्योंकि-----"

नरेन्द्र ने रोक कर कहा,-"नही! नही, ऐसी खोटी बात मुहं से न निकालो!"

विनोद ने यह समझ लिया था कि,-'नरेन्द्र मल्लिका पर पूर्ण रूप से आसक्त होचुके हैं, अतएव इस विषय में विशेष तर्क वितर्क करना व्यर्थ समझ कर नहासे चलने का परामर्श स्थिर किया। किन्तु रात्रि व्यतीत हो चुकी थी, अतएव प्रातःकृत्य समाप्त करके चलने का विचार स्थिर हुआ और यह भी इच्छा थी कि तबतक कदाचित् खड्गसिह भी उन स्त्रियों को पहुंचा कर लौट आवेगे।