पृष्ठ:मल्लिकादेवी.djvu/११२

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[इक्कीसवां
मल्लिकादेवी।


"यं मन्ये मृतमस्मिन् सोप्यायाति प्रसन्नचेतसा किम् ।" (भट्टकवि) ध्याह्न काल के समय एक व्यक्ति वीरवेश से अलकृत म होकर हाथ में उल्लग असि धारण किए निर्जन मार्ग nam में अश्व दौड़ाता चला जाता था । उसका फलेवर 5 धर्माक्त और बदन परिश्रांत था।वह इतनी अचिंतनीय चिंता में मग्न था कि एक प्रकार भात्मविस्मृत होकर गमन कर रहा था। उसे किसीने आह्वान किया,-"अजी ! खडे रहो, ठहरो, ठहरो, सुनो, कहां भागे जाते हो" पर वह बिना कर्णपात किए ही ऊर्ध्व श्वास से अश्व चालन करता चला जाता था। ____ कोलाहल बड़ी चमत्कृत वस्तु है। बार बार के आह्वान से सैनिक का ध्यान भरा हुआ, उसके कानो में "ठहरो, ठहरो," का शब्द गया; अतएव वह आश्चर्यित और स्तभित हो ठहर कर इधर उधर देखने लगा । इतने में सहसा एक युवा पुरुष ने गाकर अश्व की वल्गा धारण करली। सैनिक,-"तुम कौन हो तुमने किसलिये हमारे कार्य में व्याघात किया ?" युवा,-"छिः! तुम महा कायर हो, क्यों इतने दिनों से छिपते फिरते हो?" सैनिक यह सुनकर क्रोध से जाज्वल्यमान होगया और उसने असि उठाकर कहा,-"तू कौन है, बे उल्ल ! बोल जलदी, नहीं तो अभी तेरा दो खण्ड कर दूंगा!" युवा,-"बड़ी प्रशला होगी, संसार में बड़ा यश मिलेगा, और हम भी देखेंगे कि तुम कितने बड़े बीर हो! शेखी और तीन काने! टांय टांय फिस्स !!!" "अच्छा ! अब तू सावधान हो!" यों कहकर सैनिक खड्ग प्रहार किया चाहता था कि युवा उछल कर हट गया और अपना