"यं मन्ये मृतमस्मिन् सोप्यायाति प्रसन्नचेतसा किम् ।"
(भट्टकवि)
ध्याह्न काल के समय एक व्यक्ति वीरवेश से अलकृत
म होकर हाथ में उल्लग असि धारण किए निर्जन मार्ग
nam में अश्व दौड़ाता चला जाता था । उसका फलेवर
5 धर्माक्त और बदन परिश्रांत था।वह इतनी अचिंतनीय
चिंता में मग्न था कि एक प्रकार भात्मविस्मृत होकर गमन कर
रहा था। उसे किसीने आह्वान किया,-"अजी ! खडे रहो, ठहरो,
ठहरो, सुनो, कहां भागे जाते हो" पर वह बिना कर्णपात किए ही
ऊर्ध्व श्वास से अश्व चालन करता चला जाता था।
____ कोलाहल बड़ी चमत्कृत वस्तु है। बार बार के आह्वान से सैनिक
का ध्यान भरा हुआ, उसके कानो में "ठहरो, ठहरो," का शब्द
गया; अतएव वह आश्चर्यित और स्तभित हो ठहर कर इधर उधर
देखने लगा । इतने में सहसा एक युवा पुरुष ने गाकर अश्व की
वल्गा धारण करली।
सैनिक,-"तुम कौन हो तुमने किसलिये हमारे कार्य में
व्याघात किया ?"
युवा,-"छिः! तुम महा कायर हो, क्यों इतने दिनों से
छिपते फिरते हो?"
सैनिक यह सुनकर क्रोध से जाज्वल्यमान होगया और उसने
असि उठाकर कहा,-"तू कौन है, बे उल्ल ! बोल जलदी, नहीं तो
अभी तेरा दो खण्ड कर दूंगा!"
युवा,-"बड़ी प्रशला होगी, संसार में बड़ा यश मिलेगा, और
हम भी देखेंगे कि तुम कितने बड़े बीर हो! शेखी और तीन काने!
टांय टांय फिस्स !!!"
"अच्छा ! अब तू सावधान हो!" यों कहकर सैनिक खड्ग
प्रहार किया चाहता था कि युवा उछल कर हट गया और अपना
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(११०)
[इक्कीसवां
मल्लिकादेवी।