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पृष्ठ:मल्लिकादेवी.djvu/११३

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परिच्छेद]
(१११)
वङ्गसरोजिनी।

घेश परिवर्तन करके बोला,-"छिः! इतना भी ज्ञान नहीं है। मैं कौन हूँ! यदि सामर्थ्य हो तो मारो तो सही, देखें !"

उसे देख और,-"हाय सरला "यों कहकर सैनिक घोड़े से गिरी चाहता था कि सरला ने शीघुताले दौड कर उसे थाम कर बचा लिया।

सैनिक ने आत्मसयम करके,अश्व से अवतीर्ण होकर,सरलाको गाढ़ाश्लेष किया और उसका मुख चुम्बन करके कहा,-" प्रिये ! सरले ! तुम इतने दिनों तक कहा थीं?"

सरला,-'यमलोक मे ! क्या तुम अप सरला को चाहते हो! यदि चाहते तोसरला के बिना क्षणभर तुम कभी रह सकते! अस्तु, तुम सरला को मरो ही समझ लो, जैमा अबतक समझते थे!"

सैनिक,-"छिः । कैसी बातें करती हो! बुद्धि स्थिर करके बोलो। हाय ! तुम्हारा हमने थोडा अनुसन्धान किया था! किंतु जब कहीं भी तुम्हारा पता न लगा तो निराश होकर हमरो बैठे। सरला,-"हांजी,ऐसी ढेर बाते सुनी हैं,विशेष परिश्रम न करो।"

सैनिक -"सरला! यदि कहो तो हम अपना हदय चीर फर तुम्हें दिग्वादें । वहां केवल तुम्हारी ही सरलतामयी मूर्ति प्रेमसर्वस्व का आसन ग्रहण किए बिराज री है। तुम क्यों व्यर्थ वाग्वाण से जर्जरित हदय को और भी छिन्न-भिन्न कर रही हो !"

सरला सैनिक के गले में लपट गई और भावभरे लोचनों से कटाक्ष करके सस्मित बोली,-" मुझे निश्चय है कि तुम मुझे विशेष चाहते हो।

सैनिक,-"फिर वही बात ! विशेष तुम्हें चाहते हैं, यह ठीक है, किंतु क्या न्यून प्रेम भी कही अन्यत्र है !"

सरला,-"अच्छान सही, जाने दो। मैंने भी तुम्हारे अनुसंधान में त्रुटि नहीं की थी, पर आज मेरा भाग्य सुप्रसन्न हुआ। अस्तु, अब तुम कहां रहते हो?"

सैनिक,-"तुगरलखा के यहां,नरेन्द्र से वैर का बदला लेने के लिये।"

सरला,-"ऐं! क्या कहा ? तुम्हारा अफल में कुछ बिकार तो नही आया ?"

सैनिक,-"वाह | विफार कैसा? क्या मंत्री महाशय के परिवार का सर्वनाश किसो दूसरे ने किया है? यहसब कुकर्मनरेन्द्रहीका है!"

सरली,-"तब सो देखती हूँ कि तुम महा भ्रम में पतित होकर