पृष्ठ:मल्लिकादेवी.djvu/१७

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परिच्छेद]
(१५)
वङ्गसरोजनी।

थी कि नहीं, इसमें सदेह है । उसका अग रोमाचित, कपित और धर्माक्त हुआ । युवती इतनी देर तक खडी खड़ी कनखियों से ये सब रहस्य देख रही थी, पर युवा ने न जाना कि,-'यह सुंदरी हमसे भी चतुरा है।'

थोडी देर के अनन्तर वह बोली,-"आकृति और प्रकृति से आप के महाराज होने में संदेह नहीं है।"

युवक,--"इससे तुम्हें क्या प्रयोजन है ?"

सुन्दरी,--"बहुत कुछ न्याच कराना है।"

युवक,--"निःशक होकर कहो।"

सुन्दरी,--"मो कुछ विशेष नहीं है,केवल यही कि अपराधी के अपराध की क्षमा है, कि नहीं?"

युवक,--" विचार करने पर,-है भी, नहीं भी है। अपनी अपनी सीमा में दोनों हैं।"

सुन्दरी,--" तो यह कहिए कि आप जो अपरिचित स्त्रियों में यों घुस आए, इसमें आपका विशेष अपराध है, था मैंने जो दया करके आपको स्थान दिया, इस लिये मेरा !!! "

युवक,--"प्रायः युवाओं का स्वभाव चंचल होता है, इस लिये उनकी बातों पर सहसा स्त्रियों को विश्वास कर के दया दिखाना बड़ी भूल है।

सुन्दरी,--"और स्त्रीजनों में निःशङ्क घुस आना उतना बुरा नहीं ? धन्य!"

युवक,--" अभी इसके उत्तर देने में हम असमर्थ हैं।"

सुन्दरी,--"तो बिना उत्तर दिए, यहांसे भापका जाना धर्म- विरुद्ध होगा।

यह सुन, युवक सन्नाटे में आकर घहीं खड़ो रह गया। युवती ने सोचा कि, 'ये वीरबेश में होने पर भी शृङ्गार के भागार हैं, पर यहां इनका आना भी निष्प्रयोजन नहीं है । अस्तु देखा जायगा।' फिर उसने दिर्भय होकर कहा,-"आप इतने चंचल क्यों हो रहे हैं ? मैं आपको चीन्हती हूं।"

यों कहकर युवती हसने लगी। उसका यह पाप मानों सर्प- दंशन से भी गुरुतर युवा को जान पड़ा। उसके मुख का रङ्ग फीका पड़ गया। वह खड़ा था, पर धम से पृथ्वी पर बैठ कर युवती के

(३)र०