के राज्य-काल में पाटलिपुत्र की जो उन्नति थी वही इस समय बुग़दाद की थी। बुग़दाद के बादशाह ख़लीफ़ा कहलाते थे। रौनक़ और आबादी में यह शहर शीराज़ से कहीं चढ़ बढ़ कर था। यहां के कई ख़लीफ़ा बड़े विद्याप्रेमी थे। उन्होंने सैकड़ों विद्यालय स्थापित किये थे। दूर दूर से विद्वान् लोग पठन-पाठन के निमित्त आया करते थे। यह कहने में अत्युक्ति न होगी कि बुग़दाद का सा उन्नत नगर उस समय संसार में नहीं था। बड़े बड़े आलिम, फ़ाज़िल, मौलवी, मुल्ला, विज्ञानवेत्ता और दार्शनिकों ने जिनकी रचनायें आज भी गौरव की दृष्टि से देखी जाती हैं बुग़दाद ही के विद्यालयों में शिक्षा पाई। विशेषतः "मदरसा निज़ामियां वर्तमान आक्सफोर्ड या बर्लिन की युनिवर्सिटियों से किसी तरह कम न था। सात आठ सहस्र छात्र उसमें शिक्षालाभ करते थे। उसके अध्यापकों और अधिष्ठाताओं में ऐसे ऐसे लोग होगये हैं जिनके नाम पर मुसलमानों को आज भी गर्व है। इस मदरसे की बुनियाद एक ऐसे विद्याप्रेमी ने डाली थी जिसके शिक्षाप्रेम के सामने कारनेगी भी शायद लज्जित हो जायं। उसका नाम 'निज़ामुलमुल्कतूसी' था। 'जलालुद्दीन सलजूक़ी' के समय में वह राज्य का प्रधान मन्त्री था। उसने बुग़दाद के अतिरिक्त वसरा, नेशापुर, इसफहान आदि नगरों में भी विद्यालय स्थापित किये थे। राज्यकोष के अतिरिक्त अपने निज के असंख्य रुपये शिक्षोन्नति में व्यय किया करता था।
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