यद्यपि इन में एक वाक्य भी नीरस नहीं है, किन्तु भाषा ऐसी मधुर और सरल है कि उस पर आशचर्य्य होता है। साधारण लेखक जब सजीली भाषा लिखने की चेष्ठा करता है तो उस में कृत्रिमता आजाती है लेकिन सादी ने सादगी और सजावट का ऐसा मिश्रण कर दिया है कि आज तक किसी अन्य लेखक को उस शैली के अनुकरण करने का साहस न हुआ, और जिन्होंने साहस किया, उन्हें मुँह की खानी पड़ी। जिस समय गुलिस्ताँ की रचना हुई उस समय फ़ारसी भाषा अपनी बाल्यावस्था में थी। पद्य का तो प्रचार हो गया था लेकिन गद्य का प्रचार केवल बात-चीत, हाट-बाज़ार में था। इसलिए सादी को अपना मार्ग आप बनाना था। वह फ़ारसी गद्य के जन्मदाता थे। यह उनकी अद्भुत प्रतिभा है कि आज ६०० वर्ष के उपरान्त भी उनकी भाषा सर्वोत्तम समझी जाती है। उनके पीछे कितनी ही पुस्तकें गद्य में लिखी गईं, लेकिन उनकी भाषा को पुरानी होने का कलंक लग गया। गुलिस्ताँ जिसकी रचना आदि में हुई थी आज भी फ़ारसी भाषा का शृंगार समझी जाती है। उसकी भाषा पर समय का कुछ भी प्रभाव नहीं पड़ा।
साहित्य संसार में कविवर्ग में ऐसा बहुत कम देखने में आता है कि एक ही विषय पर गद्य और पद्य के दो ग्रन्थों में गद्य रचना अधिक श्रेष्ठ हो। किन्तु सादी ने यही कर दिखाया है। गुलिस्ताँ और वोस्ताँ दोनों में नीति का।