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पृष्ठ:महात्मा शेख़सादी.djvu/३९

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(३) प्रजा के धन को अपने भोग-विलास में न उड़ाकर उन्हीं के आराम में खर्च करे।


मैं दमिश़्क में एक औलिया की क़ब्र पर बैठा हुआ था कि अरब देश का एक अत्याचारी बादशाह वहां पूजा करने आया। नमाज़ पढ़ने के पश्चात् वह मुझ से बोला कि मैं आजकल एक बलवान शत्रु के हाथों तंग आगया हूँ। आप मेरे लिए दुआ कीजिये। मैंने कहा कि शत्रु के पंजे से बचने के लिए सब से अच्छा उपाय यह है कि अपनी दीन प्रजा पर दया कीजिये।


एक अत्याचारी बादशाह ने किसी साधु से पूछा 'कि मेरे लिए कौन सी उपासना उत्तम है। उत्तर मिला कि तुम्हारे लिए दोपहर तक सोना सब उपासनाओं से उत्तम है; जिस में उतनी देर तुम किसी को सता न सको।


एक दिन ख़लीफ़ा हारू रशीद का एक शाहज़ादा क्रोध से भरा हुआ अपने पिता के पास आकर बोला कि मुझे अमुक सिपाही के लड़के ने गाली दी है। बादशाह ने मन्त्रियों से पूछा कि क्या होना चाहिए। किसी ने कहा