पृष्ठ:महात्मा शेख़सादी.djvu/४०

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
(३५)

उसे क़ैद कर दीजिये। कोई बोला जान से मरवा डालिये। इस पर बादशाह ने शाहज़ादे से कहा, बेटा उत्तम तो यह है कि उसे क्षमा करो। यदि इतने उदार नहीं हो सक्ते तो उसे भी गाली दे लो।


एक साधु संसार से विरक्त होकर वन में रहने लगा। एक दिन राजा की सवारी उधर से निकली। साधु ने कुछ ध्यान न दिया। तब मन्त्री ने जाकर उससे कहा साधु जी राजा तुम्हारे सामने से निकले और तुमने उनका कुछ सम्मान न किया। साधु ने कहा भगवन् राजा से कहिए कि नमस्कार-प्रणाम की आशा उससे रक्खे जो उन से कुछ चाहता हो। अथच राजा प्रजा की रक्षा के लिए है, न कि प्रजा राजा की बंदगी के लिए।


एक बार न्यायशील नौशेरवां जंगल में शिकार खेलने गया। वहां भोजन बनाने के लिए नमक की ज़रूरत हुई। नौकर को भेजा कि जाकर पासवाले गांव से नमक ले आ। लेकिन बिना दाम दिये मत लाना। नहीं गांव ही उजड़ जायगा। नौकर ने कहा तनिक सा नमक लेने से गांव कैसे उजड़ जायगा? नौशेरवां ने उत्तर दिया:—